कर्नाटक उच्च न्यायालय ने 1979 में दर्ज एक हत्या के मामले में 68 वर्षीय बेंगलुरु निवासी चंद्रशेखर भट के खिलाफ कानूनी कार्यवाही खत्म कर दी है. अदालत ने कहा कि इतने लंबे समय के बाद दोष साबित करना मुश्किल है. न्यायमूर्ति एम. नाग प्रसन्ना ने कहा कि मुकदमे को जारी रखना न्यायिक संसाधनों की बर्बादी होगी. इस फैसले के साथ ही राज्य की आपराधिक न्याय प्रणाली का शायद सबसे पुराना मामला बंद हो गया.
यह मामला उडुपी में श्री अदमार मठ से जुड़े भूमि विवाद से जुड़ा था. 1979 में दर्ज एफआईआर के अनुसार किराएदार सीताराम भट और किट्टा उर्फ कृष्णप्पा ने नारायणन नायर और कुन्हीराम पर चाकुओं से हमला किया था, जिसमें कुन्हीराम की मौत हो गई थी. शुरुआती मुकदमे में सीताराम भट और किट्टा को दोषी ठहराया गया था, लेकिन अपील के बाद किट्टा को दोषमुक्त कर दिया गया, जबकि सीताराम भट की सजा बरकरार रही.
आरोपी की याचिका पर हाईकोर्ट का फैसला
चंद्रशेखर भट पर मुकदमे के दौरान फरार होने का आरोप था. उन्होंने अदालत में दलील दी कि उन्हें इस मामले की जानकारी नहीं थी क्योंकि वे 1979 से 2022 तक बेंगलुरु में रह रहे थे. अदालत ने पाया कि इतने लंबे समय के बाद मुख्य गवाह मौजूद नहीं होंगे और बाकी आरोपियों को भी एविडेंस की कमी होने की वजह से बरी कर दिया गया था. इसी आधार पर अदालत ने चंद्रशेखर भट के खिलाफ मामले को खत्म कर दिया.
मुकदमे की समाप्ति पर न्यायमूर्ति का बड़ा फैसला
न्यायमूर्ति नाग प्रसन्ना ने अपने आदेश में कहा कि मुकदमे को जारी रखने का कोई औचित्य नहीं है और इसे खत्म करना न्यायपालिका के समय की बचत के लिए उचित होगा. इस फैसले ने न केवल इस मामले को खत्म किया बल्कि इस तरह के लंबे समय से लंबित मामलों पर भी सवाल उठाए हैं.